

पांडे एन डी देहाती/ संपादक
लोकसभा चुनाव 2024 का परिणाम, सबसे बड़े प्रदेश में जनता का जनादेश नए अध्याय का श्रीगणेश साबित हुआ। यूपी की 80 सीटों में वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 62 सीट जीतकर कीर्तिमान स्थापित किया था। तब बसपा को दस, सपा को पांच और कांग्रेस को महज एक सीट मिली थी। इस चुनाव में भाजपा आधी हो गई, उसे 33 सीट पर ही सिमटना पड़ा। सपा ने सात गुणा छलांग लगाकर 37 सीट पर कब्जा जमा लिया। कांग्रेस छह गुना बढ़ी और छह सीट जीत गई। सबसे ज्यादा नुकसान बसपा को हुआ, सूबे में बसपा का सूपड़ा साफ हो गया।
यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भ्रष्टाचार मुक्त शासन, अपराधियों पर बुलडोजर कारवाई और दबावमुक्त प्रशासनिक व्यवस्था आखिरकार जनता को रास क्यों नहीं आया? यह विचारणीय प्रश्न है।
चुनाव प्रचार में भाजपा के तमाम बड़े नेता राम मंदिर बनवाने वाले और कारसेवकों पर गोली चलवाने वाले दो वर्गो में बांट कर वोट की अपील किए। राम, राशन और राष्ट्रवाद पर लंबे ब्याख्यान हुए। गांवों तक पहुंची लाभकारी सरकारी योजनाओं का गुणगान भी खूब हुआ। फिर भी भाजपा का जादू लोगों पर असर नहीं किया। सबका साथ बिखर गया। लोग जातियों में बंट गए। हिन्दू – मुसलमान नहीं चला। लगता है टिकट बंटवारे के समय संगठन और सरकारी तंत्र की जो गोपनीय रिपोर्ट भाजपा मुख्यालय पर पहुंची थी उसे मोदी – शाह – नडडा ने नजरंदाज कर अपने विचार से टिकट दे दिए। ज्यादातर सांसद अपने क्षेत्र में अपनी लोकप्रियता खो चुके थे, उन्हें भी जाति फैक्टर के चलते फिर से मैदान में उतार दिया गया।
उधर विपक्ष ने संविधान बचाओ, आरक्षण बचाओ, रोजगार, महंगाई, अग्निवीर, एमएसपी, गांव की समस्या का मुद्दा लोगों के जेहन में लगातार उतारने का काम कर रहे थे। भाजपा के बड़े नेताओं द्वारा अखिलेश और राहुल को दो लड़कों की जोड़ी बताकर मजाक उड़ाया जा रहा था। फिर भी लगातार वे दोनों पीडीए की वकालत कर रहे थे। उन दोनों ने पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक का ऐसा दाव खेला कि हिन्दू बंट गया। चुनाव में बसपा की कोरमपूर्ति की लड़ाई दलित वर्ग के पढ़े लिखे युवकों ने समझ लिया और इंडिया गठबंधन की तरफ रुख कर लिए। भाजपा दलित वर्ग को जोड़ नहीं सकी। सवर्ण अलग अपनी पीड़ा से छटपटा रहा था, सरकार सभी सुविधाओं का लाभ जाति के आधार पर देती है वह आर्थिक आधार क्यों नहीं देखती। चुनाव में पार्टी नहीं लोग जाति देखने लगे और जब जनादेश आया तो मिला कि आधा प्रदेश साफ हो गया। चुनाव परिणाम देखकर सबसे दुखित है तो वह सवर्ण है। वह सनातनधर्मी है, वह राम भक्त है, भाजपा उसकी पहली पसंद है। योगी उसके सर्वमान्य नेता हैं। योगी के उत्तर प्रदेश में उनके समानांतर किसी और को खड़ा करने की राजनीतिक कुचक्र ने सूबे में भाजपा को बड़ा नुकसान पहुंचा दिया।



