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गांव से विलुप्त हो रहे कुएं।

स्वाभिमान जागरण संवाददाता महराजगंज।

कभी गांव की पहचान और जीवनरेखा रहे पारंपरिक कुएं अब सिर्फ यादों में बचे हैं। पीढ़ियों तक प्यास बुझाने वाले और ग्रामीण जीवन का अहम हिस्सा रहे ये कुएं अब उजाड़ हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश सरकार जहां पारंपरिक धरोहरों और प्राचीन जलस्रोतों के जीर्णोद्धार के लिए योजनाएं चला रही है वहीं जमीन पर इनका असर नगण्य दिख रहा है। मिठौरा ब्लाक क्षेत्र के उपनगर मिठौरा भागाटार मोरवन मोरवन बसवार मठिया भगवानपुर उर्फ भूलना सेमरा जगदौर बरोहिया हरखोडा़ बरवा सोनिया देउरवा पचमा जमुई पंडित नदुआ, बसंतपुर राजा, परसा राजा, सहित कई गांवों में कभी दर्जनों कुएं हुआ करते थे। अब इनमें से अधिकांश या तो पूरी तरह भर दिए गए हैं या जर्जर होकर खंडहर में तब्दील हो चुके हैं।
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले ये कुएं न केवल पीने के पानी का स्रोत थेबल्कि सामाजिक मेल-जोल का केंद्र भी थे। प्रदेश सरकार की मंशा को अधिकारी धरातल पर उतारने में रुचि नहीं दर्शा रहे हैं। इन कुओं का विलुप्त होना केवल एक सांस्कृतिक नुकसान नहीं है बल्कि यह पानी के संकट को और गंभीर बनाने वाला है। गहरी बोरिंग और हैंडपंप पर पूरी तरह निर्भरता से भूजल स्तर लगातार गिर रहा है। पारंपरिक कुएं कभी भूजल रिचार्ज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। उप नगर मिठौरा के रामधनी 80 वर्षीय बताते हैं जब कुएं थे तो साल भर पानी की किल्लत नहीं होती थी। अब हैंडपंप भी सूखने लगे हैं। सरकार अगर समय रहते पुराने कुओं को बचा ले तो ये आने वाली पीढ़ियों के लिए भी वरदान होंगे। पूर्व प्रधानाध्यापक रामरतन मानते हैं कि अगर गांव-गांव में पुराने कुओं की सफाई, मरम्मत और संरक्षण किया जाए तो यह न केवल सांस्कृतिक धरोहर को बचाएगा बल्कि पानी के संकट से निपटने में भी मदद करेगा। इसके लिए जरूरी है कि जिला प्रशासन ग्राम पंचायतों के साथ मिलकर कुओं की पहचान करे, जीर्णोद्धार कार्य समयबद्ध तरीके से कराए और जवाबदेही तय करे। इस सम्बन्ध में खण्ड विकास अधिकारी मिठौरा राहुल सागर ने कहा कि ऐसे सभी ग्राम पंचायतों में स्थित कुओं की रिपोर्ट के लिए संम्बधित अधिकारी को निर्देशित किया है,
ताकि इस पर पहल हो सके।

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