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संसद भवन लाइब्रेरी में पहुँची फतेहपुर के लेखक प्रवीण पांडेय की पुस्तक “यमुना की सहेलियों की पीड़ा”

खागा/फतेहपुर ::- फतेहपुर के पर्यावरण प्रहरी और बुंदेलखंड राष्ट्र समिति के केंद्रीय अध्यक्ष प्रवीण पांडेय द्वारा लिखित पुस्तक “यमुना की सहेलियों की पीड़ा” को संसद भवन की प्रतिष्ठित लाइब्रेरी में स्थान मिला है। यह उपलब्धि न केवल लेखक के लिए गौरव का क्षण है, बल्कि पूरे बुंदेलखंड और जल-पर्यावरण संरक्षण से जुड़े आंदोलनकारियों के लिए भी एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।

नदियों की दुर्दशा पर केंद्रित पुस्तक

प्रवासी प्रेम पब्लिकेशन, इंडिया से प्रकाशित इस पुस्तक में यमुना नदी की वास्तविक सेहत और उसकी सहायक नदियों की हालत पर विस्तार से चर्चा की गई है। लेखक का मानना है कि यमुना का जीवन उसके अपने प्रवाह से अधिक उसकी सहेलियों – चंबल, बेतवा, केन, हिंडन, काली, साहिबी जैसी सहायक नदियों पर निर्भर है। इन नदियों का अस्तित्व शहरीकरण, प्रदूषण, अवैध रेत खनन, जलवायु परिवर्तन और अनियंत्रित औद्योगीकरण से गहरे संकट में है।

पुस्तक में बताया गया है कि इन नदियों की दुर्दशा का सीधा असर यमुना की स्वच्छता, जल प्रवाह और संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ रहा है। लेखक सवाल खड़े करते हैं कि क्या अब भी समय रहते हम इन सहायक नदियों को बचा सकते हैं? क्या यमुना को उसके मूल स्वरूप में लौटाना संभव है? पुस्तक में संभावित समाधानों की गहन पड़ताल भी की गई है।

लेखक का संघर्ष और पहचान

प्रवीण पाण्डेय (एमसीए, एमए राजनीति विज्ञान, शिक्षा शास्त्र, एमजेएमसी, एलएलबी) विद्यार्थी जीवन से ही सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विद्या भारती और गंगा समग्र जैसे संगठनों से जुड़े रहते हुए उन्होंने पर्यावरण संरक्षण और समाज सुधार के अनेक अभियानों का नेतृत्व किया।

उन्होंने “जल तीर्थ आंदोलन” के माध्यम से गाँव-गाँव में जल संरक्षण का संदेश पहुँचाया, “तालाब संवाद यात्रा” के जरिए प्राचीन जलाशयों के संरक्षण की पहल की, नदियों की पदयात्राएँ कीं और हरियाली बचाने के लिए पेड़ों पर रक्षा सूत्र बाँधने का अभियान चलाया। उनकी सक्रियता के चलते कई प्राचीन तालाब प्रशासनिक मदद से कब्जा मुक्त कराए जा चुके हैं।

पाँच वर्षों तक विप्रो और आईबीएम जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में कार्य करने के बाद उन्होंने अपना जीवन शिक्षा, पर्यावरण और समाज सुधार को समर्पित किया। वे वर्तमान में बुंदेलखंड राष्ट्र समिति के संस्थापक और केंद्रीय अध्यक्ष हैं और अखंड बुंदेलखंड राज्य की माँग को लेकर भी सक्रिय संघर्ष कर रहे हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता

संसद भवन लाइब्रेरी में पुस्तक का स्थान पाना किसी भी लेखक के लिए अत्यंत सम्मान की बात है। यह न केवल प्रवीण पाण्डेय के लेखन और पर्यावरणीय चिंतन की मान्यता है, बल्कि यह संकेत भी है कि नदियों और पर्यावरण पर उनकी चिंता

Dainik Swabhiman Jagran

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