
स्वाभिमान जागरण संवाददाता
देवरिया।मारपीट की घटनाओं में छेड़खानी, बाली छीनना, मंगल सूत्र छीनना अक्सर झूठा आरोप ही रहता है. पुलिस को ऐसे मामलों की तहकीकात ठीक से करने के बाद ही केस लिखने चाहिए, लेकिन प्रायः प्रभाव या प्रलोभन की वजह से गलत धाराओं में केस दर्ज कर दिया जाता है।
दो प्रकार की व्यवस्था नहीं होनी चाहिए। गरीब आदमी के वोट की कीमत उतनी ही होती है जितनी किसी अमीर की, लेकिन ज्यादातर मामलों में सत्ता और प्रशासन का संरक्षण अमीर को ही मिलता है। ऐसी व्यवस्था से आम आदमी का विश्वास प्रशासनिक व्यवस्था से उठ जाता है।
ब्लाइंड मर्डर जैसे जघन्य अपराधों में एक दो दिन तेजी रहती है, पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी यहाँ तक की डीआईजी तक का दौरा होता है। लोगों के गुस्सा को शांत करने के लिए इंस्पेक्टर हटा दिया जाता है। उसके बाद आम आदमी का गुस्सा उतर जाता है और हत्या जैसे अपराध की फाईल ठंडे बस्ते में डाल दी जाती है।
थानों में सीसीटीबी कैमरे लगे हैं, कभी पुलिस का कोई वरिष्ठ अधिकारी उसके फुटेज नहीं जाँचता परखता कि थानों में क्या चल रहा है? कैसे चल रहा है? कौन फरियादी रोज आ रहा है? क्या वह फरियादी ही है? जो रोज परेशान हो रहा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी महराज के जीरो टॉलरेंस नीति को कमजोर करने में कौन कौन अधिकारी कर्मचारी सम्मलित हैं? यदि सरकार के निर्देशों के विपरीत कार्य हो रहे तो जिस अधिकारी के द्वारा यह कृत्य हो रहा, उस पर कौन सी कार्रवाई की गयी?